Tuesday, August 30, 2011

ज़िन्दगी किश्तों में कट रही है



ज़िन्दगी किश्तों में कट रही है,
ऐसा लग रहा है कि हर दिन एक क़र्ज़ उतर रहा हूँ,
सुबह कि किरणों के साथ दिन चढ़ता है,
और रात के साये में अगले सुबह कि आश होती है,
ज़िन्दगी किश्तों में कट रही है,
अपने माथे कि सिकन को देखकर हंसी आती है,
आज कहाँ आ कर खड़ा हूँ,
किस चीज़ कि प्यास में दौड़ रहा हूँ,
कभी अपने आप पे इठलाता हूँ,
कभी अपने आप पे इतराता हूँ,
कभी यूँ ही दिल को बहला कर,
अपने आप में ही मुस्कुराता हूँ,
कोई एक कसक दिल में बाकी है,
जीवन कि बगिया में एक महक बाकी है,
आज अपनी परछाई से डर लगता है,
कहीं क़र्ज़ उतारते उतारते जीवन ना बीत जाए,
कहीं अपने आप को सवांरते सवारंते रात ना आ जाए,
ज़िन्दगी किश्तों में कट रही है ||||

-- ज्ञान प्रकाश 

1 comment:

  1. awesome dear...very true!!awesome dear...very true!!

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