Thursday, February 3, 2011

पहचान...........



चलो आज एक नया आशियाना बना लेते हैं |
हार का एक और जश्न मना लेते हैं |
नए सफ़र पर फिर से एक नया कदम बढ़ा देते हैं |
अपनी कमियों को फिर से एक नया जामा ओढा देते हैं |

हार का जश्न मनाते मनाते, जीत का स्वाद भूल चुके हैं |
हर गम में मुस्कुराते मुस्कुराते, रोने का अंदाज़ भूल चुके हैं |
अपने चेहरे पे इतने मुखोट्टे चढ़ा चुके हैं की |
आज अपने असल चेहरे की पहचान भूल चुके हैं |

आज फ़क्त अकेले बैठा तो आँखों से गिरी एक बूंद ने कहा |
आज इन श्वेत और श्याम रंगों को छोर देते हैं |
सात रंगों से एक नया अरमान बना लेते हैं |
जीवन की बगिया में फिर से एक नया फूल खिला लेते हैं |

--- ज्ञान प्रकाश |
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