क्यों इतना याद आते हो तुम,
क्यों हमेशा दिल को दुखाते हो तुम,
तुम्हारे प्यार ने हमेशा मुझे रौशनी दी है,
पर क्यों इतना रुलाते हो तुम |
तुम्हारे इंतज़ार में किताबों में रखा फूल सुख गया है,
पर क्यों हमेशा दिल का कमल खिलाती हो तुम,
आँखों से बहते अश्क भी सुख गए है अब तो,
क्यों दिल के ज़ख्म को हमेशा बहाती हो तुम |
कभी सोचा था दिल में रखा प्यार बताऊंगा तुझे,
पर क्यों ज़िन्दगी के हर मोड़ पे अपने आप से डर जाता हूँ मैं,
काश मैं तुमसे अपने दिल का हाल बता पता,
पर क्यों यूँ ही अपने दिल को हमेशा समझा लेता हूँ मैं |
-- ज्ञान प्रकाश